खता क्या थी मेरी ?
कहानी जानने के लिए आप से अनुरोध पिछले भाग पढ़िए।
रोने की आवाज की तरफ चलते हुए ठाकुर साहब ने देखा एक उन्नीस बीस साल की लड़की उनके दलान(पहले के जमाने में मुख्य द्वार के बाद एक कमरा सा होता था जिसे दालान कहते थे अजनबी अतिथि वहीं ठहरता था।)में बैठी घुटनों में मुंह दे कर रो रही थी। ठाकुर साहब उसके पास पहुंच कर बोले,"लाली। किस की है तू? काहे माहरै घरां आ कै रो रिंया रोनेहै।"जैसे ही ठाकुर साहब ने ये कहा उस लड़की ने अपना चेहरा उपर उठा कर ठाकुर साहब को देखा उसकी आंखें लाल अंगारे जैसी थी , मुंह पर चोट के निशान थे। ठाकुर साहब को देखकर उसका रोना बंद हो गया और वह बाहर दरवाजे की तरफ चलने का इशारा करने लगी। ठाकुर ने सोचा हो सकता है गांव की कोई लड़की है घर में किसी से बात हो गरी होगी डर कर यहां आ गयी। ठाकुर महेन्द्र प्रताप उसे उसके घर छोड़ने चल दिए। लड़की आगे आगे ठाकुर महेन्द्र प्रताप पीछे पीछे।बस कहते जा रहे ,"लाली इस तरह घर मह कोई बात हो जा तो बाहर नहीं घुमनो चाहिए।जा आपने घरां जा। ठाकुर साहब को उसे घर छोड़ने की इतनी जल्दी थी कि यह भी नहीं देखा कि वो लड़की हवेली के बंद दरवाजे से ही बाहर हो गयी। महेन्द्र प्रताप हवेली का मुख्य द्वार खोलकर उसके पीछे-पीछे एक बुजुर्ग की तरह उसे घर छोड़ने चल दिए। लड़की उन्हें मुख्य बाजार में जहां उनकी मिठाई की दुकान थी वहां तक ले आयी,"लाली ताहरो घर कठै है।"ठाकुर साहब का मुंह अपनी दुकान की तरफ था।जैसे ही उन्होंने लड़की की तरफ देखा। लड़की रोती हुई गनपत साहू के मकान में चली गयी। ठाकुर साहब एकदम से चौंक गये। उन्हें याद आया कि गणपत का मकान तो कयी सालों से बंद पढ़ा था। यह लड़की इस मकान में कैसे चली गई।ठाकुर साहब का दिमाग भनानेलगा ।
ठाकुर साहब मन ही मन सोचने लगे कि गनपत साहू का मकान तो बिकाऊ था कल तक ,आज कौन आ गया इस में रहने।यही सोचते सोचते घर आ गये दरवाजे की सिटकनी लगा कर अपने पलंग पर बैठे तो जैसे ठाकुर साहब को कुछ सोचकर करंट सा लगा।अगर सिटकनी मैंने खोली तो वह लड़की मुझसे पहले बाहर कैसे चली गई।
नींद ना आने के कारण ठाकुर महेन्द्र प्रताप गनपत साहू के विषय में सोचने लगें। कितना भला आदमी था पता नहींएक ब दो करोड़ से ऊपर की जायदाद कौड़ियों के भाव क्यों बेच रहा है।दो बेटे ,दो बेटियां , भरा-पूरा परिवार था।एक बेटा और एक बेटी पहली से और एक बेटा और एक बेटी दूसरी से थे।सुना था दूसरी बीवी तेज तर्रार थी पहली की लड़की को घर से बाहर झांकने भी नहीं देती थी खुद की जाई तो कभी कभार बाहर दिख भी जाती थी पर सोतेली का चेहरा भी किसी ने नहीं देखा था।घर की इज्जत की आड़ में खूब अत्याचार करती थी।
यही सोचते सोचते ठाकुर साहब की आंख लग गयी।भोर होने वाली थी जब आंख लगी तो ठाकुर देर तक सोते रहे वो तो भगवान सिंह दुकान जाते समय पगालगी करने आया तो बोला ,"कायी पिता जी थेह उठठा कोनी अब तलक म्हारा तो कालजा मुंह में आग्या।थेह ठीक तो हो"। ठाकुर महेन्द्र प्रताप अंगड़ाई लेकर उठे और बोले,"हां भाई सब ठीक है तू गया नहीं दुकान पर।बस जा रहियया हूं पिता जी।इतना कहकर जैसे ही दुकान जाने के लिए भगवान सिंह मुड़ा ठाकुर साहब बोले,"है र! गनपत का मकान किसी ने ले लिया के "।ना पिताजी पर कायि पूछो हो। ,"ना ऐसे ही जा दुकान जा"।सारा दिन इसी उधेड़बुन में निकल गया शाम का धुंधलका होने लगा भवानी घर आ गया फिर से उसकी वहीं रट पिता जी वह मकान ले लो ना। ठाकुर महेन्द्र प्रताप को भी अब मकान में जिज्ञासा होने लगी थी।बेटे को पुचकारते हुए कहा,"थावस रख करूंगा बात भगवान से"।रात को फिर से वही रोने की आवाज ठाकुर साहब हड़बड़ा कर उठे जा कर देखा वही लड़की दरवाजे के पास खड़ी हुई थी।सुबक रही थी।ठाकुरसाहब उससेपूछा,"लाली तुम कहां गायब हो जाती हो।"लड़की ने सुबकतते हुए बोला," दादा जी मकान क्यों नहीं लेते।"ठाकुरसाहब एकदम से हैरान रह गए।सोचने लगे इसे कैसे पता?
ठाकुर साहब ने सोचा कि यह लड़की कैसे जानती है कि हमारे घर मे मकान के लेनदेन की बात हो रही है। एक बार को ठाकुर ये भी भूल गये कि वह लड़की उन्हें बार बार क्यों दिखाई दे रही है। अपनी तांत्रिक विद्या आत्माओं से बातें करना, उन्हें उनके धाम तक पहुंचाना। बस ठाकुर साहब को तो यही बैचेनी कि ये लाली(लड़की) हमारे घर की बात कैसे जानती है। उन्होंने उस लड़की से कहा, "बेटी तू कौन है, इस तरह क्यों रोती है तुझको क्या दुख है।तू कैसे जानती है कि मेरा छोटा बेटा गनपत साहू का मकान खरीदने की जिद कर रहा है।" तब वह लड़की अपनी लाल हुई आँखों को पोंछते हुए बोली, "दादा जी आप हमारा ही मकान तो खरीदने की सोच रहे हैं तो मुझे कैसे नही पता होगा। "ठाकुर महेन्द्र प्रताप चिहुक गये," तू किस की है लाली? "मै गनपत की बड़ी बेटी।" लड़की ने अपनी आखों को अपने दुपट्टे से पोंछते हुए कहा।
" पर गनपत का परिवार तो शहर जाकर बस गया था तो लाली तू कैसे यहां आई पिता जी के साथ आयी है कै" ठाकुर ने बहलाते हुए कहा।" मैं यहाँ से गयी ही कब थी ददू"इतना कहकर वह लड़की रोते हुए मुख्य दरवाजे की तरफ भाग गयी और अचानक गायब हो गयी।
जैसे ही वह गायब हुई महेन्द्र प्रताप हैरान रहगये। यह क्या बला थी। हां इतना तो वो समझ गये थे कि यह थीं तो कोई आत्मा और मुझसे कोई मदद चाहती है। अब तो ठाकुर महेन्द्र प्रताप ने पूरा मन बना लिया कि गनपत साहू के मकान में कोई रुकी हुई आत्मा है और उनसे मुक्ति की कामना से बार बार मिलने आ रही है।
भोर होते ही ठाकुर अपने नित्य कर्म के लिए निकल गये आज सारी रात सोये ही नही तो सुबह तड़के ही चल दिए।बच्चों के उठने से पहले। चिडियों को दाना डाला, कुत्तों को रोटी दे कर जैसे ही बाजार में अपनी दुकान के पास आये तो यूही गनपत के मकान की तरफ नजर चली गयी। मकान क्या था पूरी हवेली थी अपने समय मे पूरे गाँव में उसकी हवेली की बनावट की धूम थी। अब तो सालों से बंद पड़ी थी तो कई हिस्से गिरने वाले होगये थे।
अचानक ही ठाकुर साहब जब बनावट देख रहे थे तो उनकी नजर ऊपर झरोखे से झांकती हुई उसी लड़की पर पड़ी वो बडी़ लाचारी से उन्हें देख रही थी अचानक उसने ठाकुर की तरफ हाथ जोड़ दिए। (क्रमशः)
Seema Priyadarshini sahay
17-Feb-2022 06:03 PM
बहुत ही रोचक कहानी
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Monika garg
17-Feb-2022 08:45 PM
धन्यवाद
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Rohan Nanda
03-Feb-2022 11:41 PM
Very nicely written
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Monika garg
12-Feb-2022 05:05 PM
धन्यवाद
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Arshi khan
27-Jan-2022 12:37 AM
Very well written
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Monika garg
27-Jan-2022 08:41 AM
धन्यवाद
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